
विट्ठलपुर
ग्रामीण भारत की असली तस्वीर अगर कहीं देखनी हो, तो वह विट्ठलपुर है। गंगा की गोद में बसा यह गाँव अपने आप में ‘पूर्ण संतृप्त’ है। यह केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, बल्कि सीखड़ न्याय पंचायत का ‘आध्यात्मिक अक्ष’ (Spiritual Axis) है। यहाँ की हवाओं में आज भी बुजुर्गों की कहानियाँ और गंगा की लहरों का संगीत गूँजता है।
सातों गांवों का सबसे प्रिय गाँव: विट्ठलपुर
विट्ठलपुर: सीखड़ न्याय पंचायत की राजधानी
विट्ठलपुर
ग्रामीण भारत में किसी गांव के अतीत उसके इतिहास को जान पाना आसान काम नही होता है। यह काफी कुछ बुजुर्गों द्वारा बताई गई कहानियों पर निर्भर करता है। लेकिन बात अगर किसी ऐसे गांव की आ जाए जो अपने आप में पूर्ण संतृप्त हो तो यह कार्य और कठिन प्रतीत होने लगता है। लेकिन अपने किसी प्रिय की इच्छा हो तो उसे पूरा करना ही पड़ता है। पिछले तीन दिनों से सोचते रहने के बावजूद मैं अपने गांव विट्ठलपुर के बारे में कुछ भी नही लिख पाया, जबकि ईश्वर साक्षी है कि मैं अपने गांव से कितना प्रेम करता हू। अतः यह बात कठिनता पूर्वक स्वीकार कर लेनी होगी कि अपने मातृभूमि के प्रति मेरा ज्ञानबोध अत्यंत क्षीण है। फिर भी प्रयास तो करना ही होगा।
सिंधोरा से सिंघोरवा तक-
किसी समय (हजारों वर्ष पहले) जब गंगा का अपवाह क्षेत्र बहुत बड़ा था और वह लगातार अपने वेग से अपना प्रवाह क्षेत्र बदल लेती थी, काशी और विंध्यधाम के लगभग मध्य में गंगा दो धाराओं में बट गई थी, और बीच में एक द्वीप जैसा भूभाग उभर कर सामने आया था। आज भी भागोलिक क्षेत्र की बनावट में आदलपुरा से मझवा क्षेत्र तक का ताल इस बात की पुष्टि करता है, सीखड़ में गंगा के अपवाह क्षेत्र को लेकर कही जाने वाली एक बात और इस बात की पुष्टि करता है ‘ सिंधोरा से सिंघोरवा तक’। सिंघोरा दक्षिण किनारा और सिंघोरवा उत्तरी किनारा है। यह वर्तमान में मगरहा के उत्तर में वाराणसी जिले का पहला राजस्व ग्राम है जो ताल क्षेत्र के करार के रूप में अवस्थित है।
तराई में नाथ पंथ का उदय और ब्राह्मणों का विस्थापन-
पिछले दिनों मैं अपनी पुस्तक मृगमारिचिका के विमोचन के लिए गोरखपुर गया तो मुझे एक आत्मिक अनुभूति हुई। मुझे लगा कि मैं अपने घर आ गया, और वहां की मिट्टी और लोगों में मुझे एक अपनापन दिखा। हालांकि इसमें एक पूर्वज्ञान भी जुड़ा हुआ था, मेरे गांव में मुझे बताया गया था कि हमारे पूर्वज तराई के सोनहुला नामक गांव से आए थे। जब कार्यक्रम समाप्त कर मैं गुरु गोरखनाथ मंदिर पहुंचा तो एक अजीब विकर्षण मुझे मेरे हृदय में महसूस हुआ। ऐसा क्यों था इस सवाल मुझे व्यग्र करने लगा। मैंने साथ के विद्वानों और गूगल पर सर्च किया तो पता चला कि नाथ पंथ के उदय के समय (प्रारंभिक अवस्था में ब्राह्मण प्रतिक्रिया वादी आंदोलन) जो लगभग एक हजार ईस्वी की बात है तराई से बहुत से ब्राह्मणों ने विस्थापन किया और भारत के विभिन्न भागों में गए। वहा एक बात और पता चली कि सोनहुला आज भी गोरखपुर जिले का एक गांव है। संभवतः नाथ पंथ के उदय और विट्ठलपुर में सोनहुला के पाठक को आपस में जोड़ा जाना समीचीन होगा।
धार्मिक उद्देश्य-
विट्ठलपुर गांव के सेटलमेंट पर गौर करें तो इसका धार्मिक और सांस्कृतिक उद्देश्य स्पष्ट प्रकट होता है। गंगा से न बहुत दूर न बहुत नजदीक, किनारे पर एक पीपल का पेड़, एक छोटा सा मंदिर और थोड़ी सी ऊंचाई पर ब्राह्मणों के कुछ परिवार जो सिर्फ अपना आध्यात्मिक उत्थान चाहते थे, आज भी विट्ठलपुर के लोगों में वो आस्था, धर्म के प्रति उनकी निष्ठा अपनी संस्कृति के प्रति उनका प्रेम देखा जा सकता है। किसी भी महत्वाकांक्षा को दरकिनार कर यहां के लोग अपनी मूल प्रकृति से समझौता नहीं करते हैं।
वर्तमान का विट्ठलपुर-
वर्तमान का विट्ठलपुर लगभग एक किलोमीटर स्क्वायर में बसा हुआ छोटा सा प्यारा गांव है, जहां हर कोई आना चाहता है। दूसरे गांव के लोगों ने भी यहां बसना पसंद किया है, और इस गांव के मन से अपना मन जोड़ लिया है, शायद यही कारण है कि ब्राह्मणों के साथ ही यहां आज अन्य जातियों के लोगों ने अपने नीड़ का निर्माण किया जिनमे, नाई, कोहार, लोहार, पाल, यादव, मौर्या, हरिजन आदि जातियां भी समाहित हैं।
विट्ठलपुर की अर्थव्यवस्था-
कृषि प्रधान विट्ठलपुर रोजगार के अन्य आयामों को भी समाहित किए हुए हैं। कुछ सरकारी कर्मचारी, पशुपालक, छोटे उद्यमी और कुछ प्रवासी ग्रामीण जो सीधे तौर पर आज भी अपने गांव से जुड़े हुए हैं और गांव के सुख दुख को अपना सुख दुख समझते हैं।
गांव की आत्मा-
इस गांव की आत्मा इसकी सहृदयता है, मनुष्य को मनुष्य समझने वाली प्रवृति, जीव और ईश्वर से प्रेम करने वाली भावना, संसार के कल्याण मात्र की कामना करने वाली प्रकृति, भौतिक संसाधनों को आवश्यकता मात्र ही प्रयोग करने की आदत गांव की प्रमुख विशेषताएं हैं। हजारों वर्षों के इतिहास में शायद ही कोई व्यक्तित्व मिलेगा जिसने आलोचनाओं के उस पार जाकर कुछ अर्जित किया हो, आधुनिक समाज हो सकता है कि इसे वैयक्तिक कमजोरी माने परंतु यह विट्ठलपुर गाँव का आध्यात्मिक अक्ष है जो इस गांव के लोगों को हृदय से सुंदर, और आत्मनिष्ठ बनाता है। आज भी सीखड़ न्याय पंचायत की यह राजधानी अपने नैतिक मूल्यों के कारण सातों गांव का सबसे प्रिय गांव है।
बहुत बहुत धन्यवाद
ज्ञानेश