सुमिरन करले उसका जिसका रचा जहान है ।
अगर जो तुझमे ज्ञान है न || टेक
वाही पवन बनाया पानी-आतस खान बनाया शानी-उसी से है बिलकुल औदानी चानी-सोना उसी से पत्थर पारस परवान है ||1||
उसने ऐसा बाग बनाया कलऔ फूलों से लटकाया-अबतक पता कोई न पाया-काया बना के पानी से पहनाया प्राण है अगर ||2||
चौदह तबक है उसका बाग चौदहो तबक खड़ा बेदागी-बता दे कहा है उसमे लाग भाग उसका जो उसके ऊपर कुर बना है ||3||
पिता जब खंजर लेके डाटा हरी को प्रहलाद जो ने रटा-रटाते भर में ही खम्भ फटा खम्भ से सिंह निकाल रिरना कुश पर गरजान है ||4||
था दुर्योधन ऐसा बीर सभा में लगा खींचने चिर द्रोपदी हरी को दिया सुमिरन चिर इतना बाढा कोई गिन न सका कैथान है । बफ्फत उसी के गुनके उसीके बल से नाम कमाए बड़-बड़ शयर दहलाए उसी के उसका चारो तरफ में मान है ||5||
