सीखड़ के कबीर: शेख बफ्फत (बफ्फतनामा)
गाँव की विशिष्ट पहचान शेख बफ्फत शायर से है, जिन्होंने मिर्ज़ापुरी शाइरी कजरी की एक अलग शैली को जन्म दिया। स्कूल का ज्ञान न होने पर भी, उनके मुख से निकले शब्द काव्य में ढले और कजरी, निर्गुन, सोहर जैसी विधाओं में उनकी रचनाओं ने त्रिनिडाड, मॉरीशस और गुयाना जैसे दूर-दराज के देशों तक अपनी छाप छोड़ी।
अमर काव्य: उनकी रचनाओं में रामायण, महाभारत और कुरआन के पात्रों पर गहन दृष्टि दिखती है, साथ ही जीवन की नश्वरता और श्रृंगार का सुंदर समन्वय मिलता है।
वार्षिक परंपरा: आज भी भादों माह के वामन द्वादशी के दिन उनकी स्मृति में वार्षिक कजली कार्यक्रम (कुश्ती दंगल के साथ) आयोजित होता है, जो उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है।
स्थानीय शिल्प और कला: मिट्टी के बर्तन (पॉटरी)
सीखड़ की संस्कृति में पॉटरी (मिट्टी के बर्तन) का शिल्प भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। स्थानीय कारीगर पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करके दैनिक उपयोग के लिए सुंदर और टिकाऊ बर्तन तैयार करते हैं। यह शिल्प गाँव की भौतिक विरासत का प्रतीक है।
गाँव की लोक-संस्कृति: रामलीला
रामलीला का मंचन सीखड़ की सामुदायिक एकता और भक्ति का केंद्र है। यह आयोजन केवल एक धार्मिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक ऐसा उत्सव है जहाँ सभी वर्ग मिलकर भाग लेते हैं और अपनी सदियों पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हैं।
