टेक – कहती नार खबर पायल -हमके भरी फिकर समायल -आयल अगहनावाँ गवने का दिनवां धरगा सखिया”
अबही खेलत रहलीव नइहरे के देश सखिन के अपने साथ लिए”
अचरा छोड़ो खोले सिरवा केश खेलौना दुनो हाथ लिए ।
उड़ान- कपड़ा तक न पहिनै जानै न लाज शरम पहिचाने -क्या गत होई पिया घर बहुत बुरा लत परगा सखिया”
आयल अगहनावाँ गवने का दिनवां धरगा सखिया” ||1||
टेक – नाही सिखालिव रसोईयवा हम पकावै न आवै घर अँगना ।
खली सिखलिव अतरवां खोसै कान पनवा से सीखे मुह रंगना ।
उड़ान- मात-पिता के सुनवाँ-कईली बड़ा-बड़ा अपगुनवाँ-गुनवाँ सीखे नाही अवगुण से देहिया भरगा सखिया ||2||
टेक – जर जावै हमरे नइहरे क लोग-जो जियादे मोर दुलार किये ।
अपने लेखे किये कमवाओ ठीक -हमरे लेखे ख्वार किए ||
उड़ान- भावै न हमके खाना-जाना होगा बिराने गउआँ–नउआँ सास ननद का सुनके जियरा जरगा सखिया ||3||
टेक – कबहु कइली न सरिरिया क सफाई नहात रहे चार दफे ।
मारे चाहे गरियावै भउजाई- हम खात रहे चार दफे ||
उड़ान- तानै पीठ पर छड़िया-हमके लागै न तनिको डरिया-सरिया धुर में सउनत-सउनत एकदम सरगा सखिया ||4||
टेक – हमके धोखे से जगा के भिनसरवाँ-सिंगरवाँ से सजा दिहिन तइसे डोलिया लीआय के कहरवाँ- दुअरवाँ पर छिपाय दिए ।
उड़ान – खास हमारी मेली-दीहली डोलिया में ढकेली-चली अकेली सखी सहेली से जिव जरगा सखिया ||5||
टेक – जाके उतरी मै सइयाँ की नगरिया-सखी री मोहे डरिया लगी रही ।
खली मइली रही गवने की चुनरियाँ शरिरिया में ने दागी रही ||
उड़ान – छोड़ो सखी सब पटका-तोहके मिली बड़ाई चटका लटका बफ्फत का सुन शायर का मन मरगा सखिया ||
आयल अगहनावाँ गवने का दिनवां धरगा सखिया ||6||
